कासिफ़ काकवी

राजपूतों को अपना अघोषित समर्थक मानने वाली बीजेपी (BJP) के लिए चुनावी साल में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh Assembly Election 2023) में राजपूतों का आंदोलन गले की हड्डी बनता जा रहा है.राजपूत और सवर्ण समाज के अन्य लोग एससी-एसटी एक्ट(SC-ST Act) में बदलाव, आर्थिक आधार पर आरक्षण (Reservation on Economic Basis)जैसे 21 मांगों को लेकर भोपाल (Bhopal) के जंबूरी मैदान में रविवार से राजपूत समाज के युवा आंदोलनरत हैं.

कब से सुलग रहा है यह मुद्दा

आइए हम आपको समझाते हैं कि क्यों यह आंदोलन मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की बीजेपी सरकार के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. इसको समझने के लिए हमें मार्च 2018 में जाना होगा. वह भी मध्य प्रदेश में चुनाव साल ही था. इसी साल एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के तहत होने वाली एफआईआर में गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एससी-एसटी समाज में यह अफवाह फैली की बीजेपी सरकार इस एक्ट को खत्म कर रही है.वहीं सवर्ण समाज के लोग इससे खुश हो गए. वो बीजेपी के साथ लामबंद हो गए.वहीं दलित संगठनों ने इसके खिलाफ दो अप्रैल 2018 को ‘भारत बंद का एलान किया.भारत बंद के दौरान मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भयानक हिंसा हुई. इमसें करीब छह लोग मारे गए.इसमें से पांच दलित थे.

कब आमने-सामने हुए दलित और सवर्ण
पिछले 30-40 साल में शायद पहली बार दलित और सवर्ण एक दूसरे के खिलाफ इतना खुल कर हथियारबंद खड़े थे.एससी-एसटी समाज के बीच फैले भ्रम को दूर करने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने एक ट्वीट किया.उन्होंने लिखा,”कोई भी माई का लाल आरक्षण नहीं खत्म कर सकता.” इस ट्वीट ने एससी-एसटी को संबल तो दिया पर सर्वण समाज खासकर राजपूत-ठाकुरों को बीजेपी से र कर दिया.

सवर्णों की इस नाराजगी का असर चुनाव पर पड़ा.बात यहां तक बिगड़ गई थी कि चंबल के बड़े ठाकुर नेता और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की भी बात समाज के बड़े नेताओं ने टाल दी और 2018 में बीजेपी को हराने के लिए वोट किया.दलित पहले से नाराज थे. वहीं ठाकुरों की नाराजगी ने बीजेपी को ग्वालियर के चंबल से साफ कर दिया. बीजेपी को मध्य प्रदेश में सरकार गंवानी पड़ी.

राजपूतों ने मध्य प्रदेश में दिखाई ताकत

ठाकुरों ने कुछ सीटों पर कांग्रेस को वोट किया तो कहीं निर्दलीय प्रत्याशी खड़ा कर अपनी ताकत दिखाई.मुरैना की अंबाह सीट इसका उदहारण है. वहीं विधानसभा चुनाव के ठीक छह महीने बाद हुए आम चुनाव में उन्होंने नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को जम कर वोट दिया.इससे साफ जाहिर है कि नाराजगी शिवराज सरकार से थी.

ठाकुरों को लुभाने के लिए सरकार ने कई जतन किए.उनके खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर में उन्हें दलितों के मुकाबले कम परेशान किया गया.आरोपियों को जल्दी बेल दे दी गई.करीब 15 साल बाद बसपा के दो विधायकों के समर्थन से बनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने सरकार बनने के एक हफ्ते बाद ही भारत बंद हिंसा के दौरान दलितों के ऊपर दर्ज हुई एफआईआर वापस लेने की घोषणा तो कि लेकिन वापस लेना भूल गई. कमलनाथ सरकार को यह घोषण भी इसलिए करनी पड़ी थी क्योंकि बसपा प्रमुख मायावाती ने केस वापस न करने पर समर्थन वापस ले लेने की धमकी दे दी थी.दलितों के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर को वापस लेने की बात कमलनाथ सरकार ने की तो लेकन 15 महीने की अपनी सरकार में कुछ खास कर नहीं सकी.

कांग्रेस का क्या हुआ?

इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिर गई. सिंधिया समर्थक 28 विधायकों के इस्तीफे के बाद उन सीटों पर 2020 में उपचुनाव कराना पड़ा. इसमें भी सीएम शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के नेताओं की ठाकुर नेताओं के साथ मीटिंग कर नाराजगी दूर करने की कोशिश की गई. लेकिन कोई खास असर नहीं हुआ.इस क्षेत्र से कांग्रेस ने आठ सीटें जीत लीं.

वहीं पिछले साल हुए पंचायत और म्युनिसिपल चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने ठाकुरों को काफी मानने की कोशिश की.केंद्रीय मंत्री और सीएम ने कई बैठकें लीं.यहां तक कि उस दौरान हुए एफआईआर को खत्म करने की घोषणा भी मुख्यमंत्री ने कर डाली पर उससे भी ठाकुरों की नाराजगी दूर नहीं हुई. बीजेपी उस क्षेत्र से ना सिर्फ साफ हो गई बल्कि मुरैना और ग्वालियर में अपना मेयर तक नहीं बना पाई.बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा,केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया तक अपना किला नहीं बचा पाए. गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी इसी क्षेत्र से आते हैं.

शिवराज सिंह चौहान सरकार की छटपटाहट

पिछले हफ्ते जब BJP समर्थक राजपूत करणी सेना ने जब महापंचायत की घोषणा की तो सरकार ने महाराणा प्रताप जयंती पर शासकीय अवकाश और रानी पद्मावती का संग्रहालय बनाने की उनकी मांग मान ली.संग्रहालय के लिए सीएम चौहान ने तो भूमि पूजन तक कर डाला. लेकिन राजपूतों के दूसरे धड़े ने अपनी 21 सूत्रिय मांगों को लेकर रविवार से भोपाल के जंबूरी मैदान आंदोलन शुरू कर दिया. इस धड़े की मांगों में एससी-एसटी एक्ट में बदलाव और आर्थिक आधार पर आरक्षण शामिल है.

बिना किसी बड़े नेता की निगहबानी में हो रहे राजपूत महापंचायत में अप्रत्याशित रूप से भीड़ जुट रही है.इस भीड़ को संभालने के लिए 2000 पुलिस बल तैनात है.कुछ नेता अपनी मांगों को लेकर धरने पर भी बैठे हैं.अनके हाथ में सीएम शिवराज सिंह चौहान के 2018 के ट्विटर का जवाबी बैनर है,”लो आ गए माई के लाल.”
चुनावी साल में जातिगत आंदोलन पूर्व की तरह बीजेपी के लिए घातक हो सकता है.

कासिफ काकवी मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनकी मध्य प्रदेश की राजनीति और समाज पर पैनी नजर रहती है. आप उनको ट्वीटर पर फॉलो कर सकते हैं.

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