पेरियार आंदोलन के गढ़ तमिलनाडु के एक गांव में जातिगत भेदभाव का चौंकाने वाला मामला सामने आया है. वहां अनुसूचित जाति समुदाय के लिए बनी पानी की टंकी में कुछ लोगों ने मानव मल फेंक दिया. जांच करने गए जिला अधिकारियों ने पाया कि जातिगत विद्वेष यहीं खत्म नहीं हो जाता,गांव में अभी भी छुआछूत का चलन है. इस गांव में छुआछूत इस हद तक है कि स्थानीय चाय की दुकान में दो गिलास की व्यवस्था है. दलितों को मंदिर परिसर में जाने की अनुमति नहीं है.

पीने के पानी की टंकी में मिलाया मानव मल

इसकी सूचना मिलने पर पुडुकोट्टई की कलेक्टर कविता रामू और जिला पुलिस प्रमुख वंदिता पांडे ने मंगलवार को मध्य तमिलनाडु के इस गांव इरायुर का दौरा किया. गांव की 10 हजार लीटर की पानी की टंकी में भारी मात्रा में मानव मल पाया गया था.इस टंकी से दलित समुदाय के करीब 100 लोगों के लिए पीने के पानी की आपूर्ति होती है.

ग्रामीणों ने कहा कि हाल के दिनों में उनके गांव के कई बच्चे बीमार पड़ गए थे.डॉक्टरों के यह कहने पर कि पेयजल स्रोत के कारण समस्या हो सकती है, कुछ युवक टैंक पर चढ़ गए और अंदर की जांच की.इलाके के एक राजनीतिक कार्यकर्ता मोक्ष गुनावलगन ने कहा,”पाया गया कि पानी की टंकी के अंदर बड़ी मात्रा में मल फेंका गया है.पानी गहरा पीला हो गया था.इसके बारे में जाने बिना एक हफ्ते से लोग इस पानी को पी रहे थे.जब बच्चे बीमार हुए,तभी सच्चाई सामने आई.”

कलेक्टर और एसपी ने क्या कार्रवाई की

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है.पिछले कुछ दिनों में पानी की टंकी के चारों ओर की बाड़ खोद दी गई थी.कलेक्टर कविता रामू ने NDTV को बताया,”जब युवक टैंक पर चढ़े,तो उन्होंने ढक्कन को खुला पाया…किसी ने भी किसी को टंकी पर चढ़ते हुए और मैला पानी की टंकी में डालते हुए देखने की बात नहीं कही.”

स्थानीय लोगों का कहना है कि इलाके में जातिगत भेदभाव गहरा है.उन्हें कभी भी गांव के मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी गई.गांव की चाय की दुकान में आज भी दलितों के लिए अलग तरह के गिलास हैं.

चाय की दुकान पर दलितों के लिए अलग कप

कलेक्टर और जिला पुलिस के मुखिया खुद जांच करने गए और चाय की दुकान के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया.दोनों पूरे दलित समुदाय को गांव के मंदिर में भी ले गए और उनसे उन लोगों की पहचान करने को कहा जिन्होंने उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश करने से रोका.मंदिर में उस समय पूजा-पाठ चल रहा था.अचानक तथाकथित ऊंची जाति की एक महिला ने घोषणा की कि उस पर एक देवता का साया है जो मंदिर में निचली जाति के लोगों को नहीं चाहता है.पुलिस ने उसके खिलाफ मामला भी दर्ज किया है.

गणित में बीएससी की डिग्री लेने वाली सिंधुजा ने कहा कि गांव में पलने-बढ़ने के 22 साल के दौरान उन्होंने कभी भी मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं किया.उन्होंने कहा, “तीन पीढ़ियों से हमें मंदिर के अंदर नहीं जाने दिया गया.कलेक्टर आज हमें अंदर ले गए,यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात है.यह अधिकार जारी रहना चाहिए और न केवल यहां,बल्कि हर उस जगह पर जहां हमें बाहर रखा जाता है.”

मंदिर में घुसने के बाद दलितों ने क्या कहा

इस 22 साल की युवती का कहना है कि वे न केवल कर चुकाने को तैयार हैं बल्कि मंदिर के रखरखाव में भी योगदान देना चाहते हैं.उन्होंने कहा,”हम किसी भी तरह से कम नहीं हैं और अपने साथ वैसा ही व्यवहार चाहते हैं.”

गांव की एक अन्य निवासी लता ने कहा कि जब से वह शादी होकर गांव आई है,उसने कभी मंदिर में प्रवेश नहीं किया.उसने कहा,”पहली बार मैं अंदर गई और देखा कि इस मंदिर में भगवान कैसे दिखते हैं,इसलिए हम बहुत खुश हैं.लेकिन यह जारी रहना चाहिए.यह सिर्फ आज के लिए नहीं होना चाहिए.”

लगभग सौ साल पहले,आजादी से बहुत पहले रामासामी पेरियार ने राज्य में मंदिर प्रवेश को लेकर विरोध शुरू किया था.इसने द्रविड़ आंदोलन को भी प्रेरित किया. लेकिन जातिवाद अब तक खत्म नहीं हो सका.कलेक्टर ने कहा कि अब तक अचानक जातिगत तनाव के लिए कोई तत्काल कारण प्रकाश में नहीं आया है.

एनडीटीवी से साभार

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