दलित ख़बर ब्यूरो

लोकसभा चुनाव नजदीक आता देख उत्तर प्रदेश में निष्ठा बदलने का दौर जारी है. इस खेल में सबसे आगे हैं बसपा के नेता.

साल 2019 में सपा के साथ गठबंधन कर जीते बसपा के सभी 10 सांसद पाला बदलकर दूसरे दलों का टिकट हासिल करने की फिराक में हैं.कई सांसदों ने तो इसकी घोषणा भी कर दी है, वहीं कुछ दूसरे दलों से आश्वासन मिलने का इंतजार कर रहे हैं. इससे बसपा के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

इतना सब होने के बाद भी पार्टी का नेतृत्व सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद लगाए बैठा है. वह भी ऐसे समय में जब बसपा का कोर वोटर भी बड़ी संख्या में उससे दूर जा चुका है. इसके बाद भी बसपा 2024 के चुनाव में ‘दलित-मुसलमान’ गठजोड़ से उम्मीद लगाए बैठी है.

बसपा में मची भगदड़
साल 2019 का चुनाव बसपा और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने मिलकर लड़ा था. इसमें बसपा को 10 सीटें और सपा को पांच सीटें मिली थीं. करीब तीन दशक बाद एक बार फिर साथ आने के बाद में यह गठबंधन वैसा कमाल नहीं कर सका था, जैसा उससे उम्मीद थी. इसके बाद बसपा ने सपा से अपना गठबंधन तोड़ लिया था. उसने सपा पर आरोप लगाया था कि वह अपना वोट बसपा उम्मीदवारों को नहीं दिलवा पाई.

अब 2024 के चुनाव से पहले बसपा के 10 सांसदों में से गाजीपुर से जीते अफजाल अंसारी अब सपा में शामिल हो चुके हैं. सपा ने उन्हें वहीं से चुनाव का टिकट भी दे दिया है. आंबेडकरनगर के सांसद रीतेश पांडेय ने भाजपा का दामन थाम लिया है. अमरोहा के दानिश अली कांग्रेस के राहुल गांधी के रथ पर सवार हैं. जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव के भी कांग्रेस में जाने की अटकले हैं. यही हाल बाकी के सांसदों का है. कुछ भाजपा तो कुछ दूसरे दलों के संपर्क में हैं.

बसपा से इस्तीफा देने के बाद आंबेडकरनगर के सांसद रीतेश पांडेय ने कहा कि पार्टी में उनकी उपेक्षा की जा रही थी. पार्टी को उनकी जरूरत नहीं रह गई थी. इस वजह से उन्होंने बसपा छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है.

मायावती का संदेश

पार्टी में मची भगदड़ के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने एक्स पर लिखा, ”बीएसपी राजनीतिक दल के साथ ही परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान के मिशन को समर्पित मूवमेन्ट भी है. जिस कारण इस पार्टी की नीति व कार्यशैली देश की पूंजीवादी पार्टियों से अलग है जिसे ध्यान में रखकर ही चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार भी उतारती है.”

उन्होंने लिखा,”अब बसपा के सांसदों को इस कसौटी पर खरा उतरने के साथ ही खुद जांचना है कि क्या उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता का सही ध्यान रखा? क्या अपने क्षेत्र में पूरा समय दिया? साथ ही क्या उन्होंने पार्टी और आंदोलन के हित में समय-समय पर दिए गए दिशा-निर्देशों का सही से पालन किया है?”

उन्होंने लिखा,”ऐसे में अधिकतर लोकसभा सांसदों को टिकट दिया जाना क्या संभव है? खासकर तब जब वे खुद अपने स्वार्थ में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे हैं और नकारात्मक चर्चा में हैं. मीडिया के यह सब कुछ जानने के बावजूद इसे पार्टी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना अनुचित है. बसपा का पार्टी हित सर्वोपरि.”

दरअसल बसपा के सांसदों को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी भी विपक्षी दलों गठबंधन ‘इंडिया’में शामिल होगी. उनको लगाता था कि अगर बसपा
‘इंडिया’में शामिल हुई तो गठबंधन में शामिल दलों के वोट बैंक की बदौलत उनकी जीत का रास्ता आसान हो जाएगा. उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ में सपा और कांग्रेस ने हाथ मिलाया है. लेकिन जब बसपा विपक्षी गठबंधन में शामिल नहीं हुई तो उनकी उम्मीदें टूट गईं और वे इघर-उधर का रास्ता देखने लगे.

कमजोर पड़ी बसपा की सोशल इंजीनियरिंग

बसपा ने उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी जीत 2007 के विधानसभा चुनाव में दर्ज की थी. उसने प्रदेश की 403 में से 206 सीटें जीत कर पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. उस साल बसपा ने जमकर सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया था.बसपा ने 114 टिकट पिछड़ों, 89 दलितों, 139 सवर्णों और 61 मुस्लिमों को टिकट दिया था.

इसके बाद उसका जनाधार सीमटता चला गया. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में वह केवल 80 सीटें ही जीत पाई थी. आज हालत यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा एक सीट पर सिमट गई है. यही हाल लोकसभा चुनाव का भी रहा. साल 2014 के चुनाव में वह अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. वहीं 2019 के चुनाव में सपा से गठबंधन करने के बाद 10 सीटें मिली थीं. लेकिन सपा पर वोट ट्रांसफर न करवाने का आरोप लगाकर बसपा ने उससे अपना गठबंधन तोड़ लिया.साल 2019 में लोकसभा चुनाव में बसपा को करीब 19 फीसदी वोट मिला था. यह 2022 के विधानसभा चुनाव में घटकर 13 फीसद रह गया. यानि की बसपा का वोट भाजपा और सपा की ओर चला गया है. इनमें दलित और मुसलमान प्रमुख हैं.

अब ऐसे समय जब लोकसभा चुनाव सिर पर है, बसपा के सामने अपने वोट बैंक को बढ़ाना बड़ा लक्ष्य है. अपने सांसदों के जाने पर बसपा ने कहा है कि वो सांसदों के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर टिकट देगी. आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बसपा की रणनीति क्या है,यह तो टिकट बंटवारे से ही पता चलेगा.

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