दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) की एक स्टैंडिंग कमेटी (स्थायी समिति ) ने बीए प्रोग्राम (दर्शनशास्त्र) के पाठ्यक्रम से ‘डॉक्टर बीआर आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) का दर्शन’नामक एक इलेक्टिव कोर्स (वैकल्पिक पाठ्यक्रम) हटाने का प्रस्ताव दिया है. विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग ने अकादमिक मामलों पर विश्वविद्यालय की स्थायी समिति के इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है. विभाग ने कुलपति योगेश सिंह से पाठ्यक्रम को बनाए रखने का अनुरोध किया है. इसके बाद से एक सब कमेटी ने पाठ्यक्रम में ‘डॉक्टर बीआर आंबेडकर का दर्शन’ को रखते हुए कुछ और दार्शनिकों को शामिल करने का सुझाव दिया है. इनमें महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के नाम शामिल हैं.

अब क्या सुझाव आया है?

सब कमेटी के इस सुझाव पर विचार करने के लिए स्टैंडिंग कमेटी की बैठक मंगलवार को हुई. सब कमेटी का सुझाव है कि यह छात्रों पर ही छोड़ दिया जाए कि वो किसे पढ़ना चाहते हैं. इस सब कमेटी ने पाठ्यक्रम में महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद के दर्शन को शामिल करने का सुझाव दिया है. इसके अलावा उसका कहना है कि दो और दार्शनिकों को शामिल किया जा सकता है, इनमें एक महिला दार्शनिक और एक सोशलिस्ट दार्शनिक शामिल हो. सब कमेटी के इस सुझाव पर एकेडमिक काउंसिल को विचार करना है. एकेडमिक काउंसिल की बैठक 26 मई को होने वाली है. उस बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार हो सकता है.

डीयू में कब से पढ़ाया जा रहा है डॉक्टर आंबेडकर का दर्शन

सब कमेटी का गठन स्थायी समिति ने पाठ्यक्रम संशोधन पर चर्चा करने के लिए किया है.दिल्ली विश्वविद्यालय के बीए प्रोग्राम (दर्शनशास्त्र) के पाठ्यक्रम में ‘डॉक्टर बीआर आंबेडकर का दर्शन’ नाम के पेपर को 2015 में शुरू किया गया था. इस पेपर में आंबेडकर का जीवन और उनके लेखन, उनकी अवधारणाएं और उनकी शोध पद्धति को पढ़ाया जाता है. हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालट के सूत्रों के अनुसार, पहली बार बीए (दर्शनशास्त्र) से पाठ्यक्रम को हटाने का सुझाव आठ मई को दिया गया था. इसके बाद 12 मई को हुई विभाग की स्नातकोत्तर और स्नातक पाठ्यक्रम समिति की बैठक में इस पर चर्चा की गई थी.विभाग की पाठ्यक्रम समिति ने इस आधार पर कि ‘आंबेडकर देश के बहुसंख्यक लोगों की सामाजिक आकांक्षाओं के एक स्वदेशी विचार प्रतिनिधि हैं’ और उन पर शोध बढ़ रहे हैं, इस प्रस्ताव पर कड़ी असहमति दर्ज करवाई थी.स्थायी समिति का सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार पर की जा रही पाठ्यक्रम समीक्षा के हिस्से के रूप में आया.

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