सिद्धार्थ रामू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) रविवार को नई संसद (New Parliament of India) का उद्घाटन करने वाले हैं. इसको लेकर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है.एक तरफ जहां राजनीतिक दल संसद के उद्घाटन कार्यक्रम में राषट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Droupadi Murmu) से न करवाने को मुद्दा बनाए हुए हैं. देश की 20 से अधिक राजनीतिक दल इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहे हैं. वहीं कुछ लोग इस कार्यक्रम को आरएसएस (Rashtriya Swayamsevak Sangh) से जोड़ कर देख रहे हैं. उनका आरोप है कि दलित होने की वजह से संसद के नए भवन के शिलान्यास में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को नहीं बुलाया गया, वहीं आदिवासी होने की वजह से उद्धघाटन कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को नहीं बुलाया जा रहा है. लोगों का कहना है कि बीजेपी (BJP) नहीं चाहती है कि संसद का उद्घाटन या शिलान्यास किसी दलित-आदिवासी के हाथों हो.

नई संसद भवन में कहां लगेगा सैंगोल?
वहीं नए संसद भवन के उद्धाटन पर एक दूसरा विवाद सेंगोल की स्थापना को लेकर खड़ा हुआ है. गृह मंत्री अमित शाह ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि नए संसद भवन में स्पीकर के आसन के पास में सेंगोल की स्थापना की जाएगी. उन्होंने सेंगोल भारतीय परंपरा का प्रतीक बताया था. उन्होंने कहा था कि 1947 में हुए जवाहर लाल नेहरु ने सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में ग्रहण किया था. शाह के मुताबिक जिस दिन नया संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा, उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु से आए अधीनम से सेंगोल को स्वीकार करेंगे. उन्होंने सेंगोल को चोल राजवंश से जुड़ा हुआ बताया था.

चोल साम्राज्य में कैसी थी ब्राह्मण की हैसियत?
सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार डॉक्टर सिद्धार्थ रामू के मुताबिक चोल साम्राज्य में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ था. उनका कहना है कि आरएसएस के प्रचारक और स्वयं सेवक नरेंद्र मोदी इस ब्राह्मणवादी हिंदू राज्य से अपना नाता कायम करना चाहते हैं. यही उनकी वैचारिकी के अनुकूल है. क्योंकि इसका नाता वेद और ब्राह्मण से है. अशोक स्तंभ और अशोक चक्र उनकी वैचारिकी, विरासत और हिंदू राष्ट्र की परियोजना के अनुकूल नहीं हैं. क्योंकि इसका नाता बुद्ध से है. डॉक्टर रामू ने एक फेसबुक पोस्ट में चोल साम्राज्य के बारे में बताया है. उनके उस पोस्ट को हम लेख के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं.

1-चोल साम्राज्य ब्राह्मणवादी-हिंदू राज्य था.उसमें ब्राह्मण और वेद की सर्वश्रेष्ठता स्थापित थी.
2-चोल साम्राज्य नौवीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी की शुरुआत तक दक्षिण भारत के सबसे बड़े हिस्से पर राज्य किया.
3-इस राज्य में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ था.
4-चोल राजाओं के गुरु उत्तर भारत, विशेषकर काशी के ब्राह्मण होते थे.
5-इस राज में ब्राह्मण यदि राजा की हत्या कर दे, तो भी मृत्यु दंड नहीं दिया जा सकता था. कुछ ब्राह्मणों ने राजा उत्तम चोल की हत्या कर दी, लेकिन उन्हें मृत्यु दंड़ नहीं दिया जा सका.
6-चोल राज्य में ब्रह्मदेव गांव थे, जहां सिर्फ ब्राह्मणों का वर्चस्व था. वे राजा के आदेश का भी उल्लंघन कर सकते थे.
7-चोल साम्राज्य में गांवों को बसाने के लिए ब्राह्मणों को जमीन दी जाती थी. ब्राह्मण उन गांवों के सर्वेसर्वा होते थे.
8-चोल साम्राज्य ने भारत में सबसे अधिक मंदिर बनवाए. इन मंदिरों को बडे़ पैमाने पर कृषि भूमि दी गई.जमीनों का लगान वसूला जाता था. मंदिर और जमीन दोनों के सर्वेसर्वा ब्राह्मण होते थे.
9-चोल राजाओं ने अपने शिला पट्टों और स्तम्भों पर वेद मंत्रों को उत्कीर्ण कराया था.
10-चोल राजा मुख्य तौर पर शैव संप्रदाय के अनुयायी थे. उन्होंने तंजूर में भव्य मंदिर बनाकर शिवलिंग स्थापित किया. तंजूर के मंदिर के लिए धन प्राप्त करने और शिव लिंग प्राप्त करने के राजाराम चोल ने चालुक्यों पर हमला बोला था.
11-पूरे देश में, विशेषकर दक्षिण भारत में शैव संप्रदाय एक समय ब्राह्मणवादी-हिंदू धर्म का मुख्य धर्म रहा है.

Share.

Leave A Reply