शुभ्रांशु चौधरी

छत्तीसहढ़ का गीदम एक व्यापारिक शहर है. यहां आदिवासी कम रहते हैं. यहां आयोजित चैकले मांदी में कुछ आदिवासी प्रतिनिधि और सरपंच आदि शामिल हुए. इसमें कुछ ने कहा कि सरकार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुलिस बनाकर अभी बड़ी हिंसा कर रही है.उनका कहना था कि जब नक्सलियों का दबदबा था, तब हम सभी लगभग उनके आदेशों पर काम करते थे, आज आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली पुलिस बनकर हम लोगों को निशाना बना रहे हैं.सभी जानते हैं कि बंदूक को मना करना, चाहे वह किसी भी तरफ की हो बहुत मुश्किल है.

पहले माओवादियों के लिए गोली चलाते थे अब सरकार के लिए चलाते हैं

चैकले मांदी में शामिल लोगों ने मांग की कि सरकार को आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुलिस का जवान बनाना छोड़कर कोई अन्य काम देना चाहिए.उनका कहना था कि ये लोग पहले माओवादियों की ओर से हिंसा कर रहे थे अब पुलिस की ओर से हिंसा कर रहे हैं. लोगों ने कहा सरकार शांति नहीं चाहती है. सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए काम करती है. हिंसा का बहाना उसके लिए असंवैधानिक काम करने के लिए अच्छा अवसर है.हिंसा की समाप्ति के लिए केंद्र से बहुत पैसा आता है. उसकी बंदरबांट को भी सरकार खोना नहीं चाहती है.

लोगों ने यह भी कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत का कोई विकल्प नहीं है. आज बातचीत शुरू करने का अच्छा समय है.अभी की सरकार ने साढ़े चार साल पहले बातचीत के गम्भीर प्रयास करने का वादा किया था, सरकार को उसका वादा याद दिलाना चाहिए. माओवादी बातचीत करने के लिए जगह-जगह संयुक्त मोर्चा का प्रयोग कर रहे हैं, उनसे भी आदिवासी अधिकार के मुद्दे पर सरकार से सीधे बातचीत करने का आग्रह करना चाहिए. जल, जंगल और जमीन की मांग को लेकर माओवादी जगह-जगह लोगों के आंदोलन को आगे कर रहे हैं, पर जब तक वे स्वयं इस बातचीत में आकर बदले में हिंसा छोड़ने की बात नहीं कहेंगे इन आंदोलनों से अधिक फायदा नहीं होगा.

क्या बोलने से डर रहे हैं लोग?

वहीं कुआकोंडा में आयोजित चैकले मांदी में मेरे बगल में बैठे व्यक्ति को खड़े होकर कुछ बोलने के लिए भी कई बार मनाना पड़ा. मुझे बताया गया था कि वे इलाके में सीपीआई के बड़े नेता हैं.उन्होंने आदिवासी महासभा से जुड़कर उन्होंने आदिवासी अधिकार के लिए कई लड़ाइयां लड़ी हैं. दंतेवाड़ा जिला वैसे तो पिछले कुछ सालों से अपेक्षाकृत शांत है, लेकिन हाल की अरनपुर की घटना ने भी असर डाला होगा. इस घटना में माओवादियों ने 11 लोगों को अप्रैल में आईईडी से किए ब्लास्ट में उड़ा दिया था, वह जगह कुआकोंडा के पास में ही है.

हिंसा का दर्द आदिवासी ही सह रहे हैं
कुआकोंडा में आयोजित चैकले मांदी के मुख्य आयोजक एक सरकारी शिक्षक थे. उन्होंने कहा हो सकता है इस काम के लिए मुझे सस्पेंड कर दिया जाए, लेकिन अब समय आ गया है कि खड़े होकर दोनों पक्षों को बोलना पड़ेगा कि दोनों पक्ष बातचीत शुरू करें और आदिवासियों को इस हिंसा से निजात दिलाएं, अब बहुत हो गया. हम लोग 40 साल से इसे सह रहे हैं. उन्होंने अपने वक्तव्य में कई बार कहा कि आज कई लोग इस बैठक में नहीं आए हैं, जिनको आना चाहिए. अभी भी लोग माओवादी शब्द सुनकर ही डर जाते हैं.

उन्होंने कहा कि यहां पिछले 40 से अधिक सालों में आदिवासियों ने ही क़ुर्बानी दी है. उन्होंने ही यह लड़ाई जमीन पर लड़ी है. बाहर से आए माओवादी तो सिर्फ नेता बने हुए हैं, उन्होंने आजतक एक भी स्थानीय आदिवासी नेता नहीं बनाया. अब पुलिस भी सिर्फ आदिवासियों को ही आगे कर रही है.अब हमें गांव-गांव से यह प्रस्ताव लाना होगा कि दोनों पक्ष आदिवासी अधिकार पर बात करें और भारतीय संविधान में लिखे आदिवासी अधिकार को जमीनी हकीकत बनाएं. यह आदिवासी का अधिकार है. इसे माओवादी उन्हें दे सकते हैं. उन्हें यह देना चाहिए.

(नई शांति प्रक्रिया माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में सरकार और भाकपा( माओवादी) को वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश है. नई शांति प्रक्रिया एक अभियान चला रही है इसे चैकले मांदी (सुख शांति के लिए बैठक) नाम दिया गया है. चैकले मांदी का आयोजन छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में किया जा रहा है. नई शांति प्रक्रिया दरसअल समाज के कुछ ऐसे लोगों का समूह है, जो मध्य भारत में शांति लाने के लिए पिछले पांच साल से प्रयास कर रहे हैं. इस प्रक्रिया से जुड़े 15 लोग अगले दो माह हिंसा प्रभावित जिलो में जाकर लोगों से शांति बैठकें करेंगे.’दलित खबर’ इन बैठकों की खबरें आप तक पहुंचाएगा.)

( लेखक नई शांति प्रक्रिया के संयोजक हैं)

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