इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. एक मामले में फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति पर एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1)(एस) के तहत कार्रवाई तभी की जा सकती है, जब अभियुक्त ने सार्वजनिक तौर पर लोगों की मौजूदगी में कोई जाति के आधार पर अपमानित किया हो.
यह कहते हुए अदालत ने एक स्कूल संचालक के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया.
क्या है पूरा मामला
यह मामला एक स्कूल के मालिक के खिलाफ था. इस मामले में रायबरेली के अनमोल बिहार स्थित बीएसएस पब्लिक स्कूल के एक स्टूडेंट के पिता ने मुकदमा दर्ज कराया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि अभियुक्त ने उसे जातिसूचक गालियां दी हैं.इसी मामले को स्कूल के मालिक ने कोर्ट में चुनौती दी थी.
इस मामले में फैसला सुनाते हुए लखनऊ बेंच के जस्टिस शमीम अहमद ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के किसी व्यक्ति को उसकी जाति के नाम से बुलाना दुर्व्यवहार या अपराध नहीं है. एससी-एसटी एक्ट के तहत अगर ऐसी घटना किसी घर के अंदर होती है, जहां कोई दूसरा बाहरी व्यक्ति मौजूद नहीं है, ऐसे में यह अपराध नहीं माना जाएगा.
अदालत ने क्या कहा है
अपने फैसले में अदालत ने कहा कि आरोपी मालिक ने सार्वजनिक रूप से शिकायतकर्ता के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया है. इसके अलावा शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में कहीं भी उस घटना के बारे साफ तौर पर कुछ भी नहीं बताया है. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक एससी-एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध तब अपराध माना जाएगा,जब समाज के शिकायतकर्ता को सार्वजनिक रूप से अपमानित और उत्पीड़ित किया गया हो.
इस में एससी वर्ग के व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि स्कूल के मालिक ने उसके बेटे को 12वीं कक्षा की परीक्षा में फेल कर दिया. जब वह इस संबंध में स्कूल में बात करने गया तो मालिक ने उनकी जाति का नाम लेकर उन्हें गालियां दीं.शिकायतकर्ता का दावा है कि केस दर्ज होने के बाद आरोपी के सहयोगियों ने केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया. इसके लिए उन्हें पांच लाख रुपये की पेशकश भी की गई.
अदालत ने यह भी कहा कि छात्र के परीक्षा और परिणाम की जिम्मेदारी सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) की है. ऐसे में स्कूल के मालिक का रिजल्ट से कोई लेना-देना नहीं है.
यह मामला भैया लाल सिंह ने रायबरेली जिले की कोतवाली में दर्ज कराया था.