भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में 255 सीटें जीती हैं. वह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है. उत्तर प्रदेश में करीब 37 साल बाद कोई पार्टी ऐसा कर पाने में सक्षम हुई है. बीजेपी ने यह चुनाव अपना दल (सोनेलाल)  और निषाद पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था. अपना दल ने 12 और निषाद पार्टी ने 6 सीटें जीती हैं. लेकिन इस जीत में भी 3 सीटें ऐसी थीं, जहां बीजेपी जमानत तक नहीं बचा पाई. 
 
प्रतापगढ़ के कुंडा में बचा रहा राजा भैया का किला
 
जिन सीटों पर बीजेपी अपनी जमानत नहीं बचा पाई उनमें पहला नाम है प्रतापगढ़ की कुंडा सीट का.इस सीट को रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया की वजह से पूरे देश में जाना जाता है. राजा भैया इस सीट से 1993 से चुनाव नहीं हारे हैं. इस बार कुंडा का मुकाबला कड़ा माना जा रहा था.वजह यह कि सपा ने वहां से पहली बार अपना उम्मीदवार उतारा था. उसने राजा भैया के पूर्व सहयोगी गुलशन यादव को टिकट दिया था. वहीं बीजेपी ने सिंधुजा मिश्र सेनानी को टिकट दिया था.ये लोग राजा भैया को हरा पाने में सफल नहीं हुए.बीजेपी उम्मीदवार की तो जमानत भी जब्त हो गई. राजा भैया को कुल 99 हजार 612 वोट मिले. सपा के गुलशन यादव को 69 हजार 297वोट मिले.सिंधुजा मिश्र सेनानी को केवल 16 हजार 455 (8.36 फीसदी) वोट ही मिले. यह जमानत बचाने के लिए जरूरी वोटों का आधा है. 
कुंडा का चुनाव जीतने के बाद लखनऊ पहुंचे राजा भैया का स्वागत करते उनके समर्थक.
 
राजा भैया सपा और बीजेपी दोनों के करीबी रहे हैं. वो सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. बीजेपी 2017 का चुनाव सपा की गुंडागर्दी के विरोध में जीतकर आई थी. उसी सरकार में राजा भैया मंत्री थे. लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीने बाद ही वो उनके साथ मंच साझा करते हुए नजर आए थे. इससे उनकी ताकत का अंदाजा लगा सकते हैं.
 
सपा के लकी यादव ने बाहुबली को दी मात
 
वहीं जौनपुर की मल्हनी सीट पर भी बीजेपी की जमानत नहीं बची.यहां मुख्य मुकाबला सपा के लकी यादव और जनता दल यूनाइटेड के धनंजय सिंह के बीच माना जा रहा था.बीजेपी ने कृष्ण प्रताप सिंह केपी को टिकट दिया था. इस सीट पर सपा ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था.इसे इस तरह समझा जा सकता है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने इस चुनाव में केवल दो सीटों पर चुनाव प्रचार किया. एक सीट थी करहल, जहां से अखिलेश यादव खुद मैदान में थे और दूसरी सीट थी मल्हनी. वहां से लकी यादव चुनाव मैदान में थे. लकी मुलायम के परम मित्र रहे पारसनाथ यादव के बेटे हैं. सपा की कोशिशों का फल भी मिला. लकी यादव ने 97 हजार 357 वोट लाकर धनंजय सिंह को मात दी.धनंजय को 79 हजार 830 वोट मिले.वहीं बीजेपी उम्मीदवार केपी केवल 18 हजार 319 (8.01 फीसदी) वोट ही ला सके.  
मल्हनी विधानसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद समाजवादी पार्टी के लकी यादव लोगों की बधाई स्वीकार करते हुए.
 
बसपा उत्तर प्रदेश में केवल इसी सीट पर जीती है
 
इसी तरह बलिया जिले की रसड़ा पर भी बीजेपी अपनी जमानत नहीं बचा पाई. रसड़ा के बसपा के दिग्गज नेता उमाशंकर सिंह की सीट ह, जो वहां से लगातार तीसरी बार चुनाव जीते हैं.उन्होंने 2022 के चुनाव में सपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के महेंद्र को  6 हजार 583 वोट से हराया है. उमाशंकर सिंह को 87 हजार 887 मत मिले. महेंद्र को 81 हजार 304 वोट मिले.रसड़ा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार बब्बन केवल 24 हजार 235 (12.08 फीसदी) वोट ही ला सके.  
अपने समर्थकों के साथ चुनाव प्रचार करते उमाशंकर सिंह.
 
बीजेपी का प्रदर्शन 2017 के मुकाबले सुधरा है
 
इस चुनाव में एक बात खास यह रही कि बीजेपी की कम सीटों पर जमानत जब्त हुई. बीजेपी ने 2017 में 5 सीटों पर जमानत गंवाई थी. बीजेपी ने 2017 में बदायूं की सहसवान सीट,अमेठी की गौरीगंज सीट,रायबरेली सदर सीट, हाथरस की सादाबाद सीट और प्रयागराज की सोरांव सीट पर जमानत गंवाई थी. लेकिन सोरांव की कहानी थोड़ा अलग थी. वह सीट बीजेपी की सहयोगी अपना दल के खाते में गई थी.लेकिन उम्मीदवार दोनों दलों ने उतार दिया था. सीट बंटवारे का अंतिम फैसला होने तक नाम वापसी की तारीख निकल गई थी. और बीजेपी उम्मीदवार सुरेंद्र चौधरी नाम वापस नहीं ले पाए. उन्हें 6 हजार 492 वोट मिले. चुनाव आयोग के मुताबिक किसी उम्मीदवार की जमानत तब जब्त मानी जाती है, जब वो अपनी सीट पर पड़े कुल वोटों का 1/6 या 16.66 फीसद वोट नहीं ला पाता है. इस स्थिति में उसकी जमानत राशि सरकार लौटाती नहीं है.

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