शुभ्रांशु चौधरी
सलवा जुडुम का डर अभी भी लोगों के मन में ताजा है. भैरमगढ की चैकले माँदी में जैसे ही हम लोगों ने शांति वार्ता की बात की, लोगों ने कहा. ”एक और सलवा जुडुम?” डर उनके चेहरों पर साफ दिख रहा था.दरअसल 2005 में शांति का प्रयोग सलवा जुडुम इसी इलाके से शुरू हुआ था. ‘सलवा जुडुम’ और उसके पहले के जन जागरण अभियान को हम लोगों ने अपनी आँखों से देखा है, इसलिए शांति शब्द कहने से ही हम लोग यहां डर जाते हैं. हम लोगों को इस बारे में थोड़ा और सोचने दीजिए. उसके बाद ही हम लोग यहां चर्चा कर पाएंगे.
किसके लिए डरावना शब्द है सलवा जुडुम
छत्तीसगढ़ में’सलवा जुडुम’ भी शांति लाने के लिए शुरू हुआ था. बाद में हमने उसका जो रूप देखा, वह भयावह था. इसलिए यहां शांति के लिए बात करने में हम लोगों को थोड़ा समय लगेगा. हम सभी शांति चाहते हैं. पर शांति यहां एक डरावना शब्द है.” सलवा जुडुम के बारे में अभी भी लोगों में दो मत हैं. कुछ ने कहा वह एक स्वत:स्फूर्त आंदोलन था. वहीं कुछ लोग यह समझते हैं कि वह शांति लाने का एक मिलिटरी प्रयोग था, जो आसफल हुआ. कुछ लोगों को यह भी समझ है कि सलवा जुडुम की ही तरह माओवादी भी शांति लाने के लिए ‘संयुक्त मोर्चा’ का प्रयोग कर रहे हैं.
चैकले मांदी में आए लोगों ने कहा पिछले कुछ सालों में आदिवासी समाज में एक पुनर्जागरण हुआ है. इसके पहले राजनीतिक दलों ने हमारे यहां से रबर स्टैम्प नेता तैयार किए और अब माओवादी कठपुतली आंदोलनकारी पैदा कर रहे हैं. खेल यहां पर यही है कि कौन किसका उपयोग करता है. हमें आशा है कि इस बार हम अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए माओवादियों का उपयोग कर सकेंगे. अब तक माओवादी अपनी क्रांति के लिए हम आदिवासियों का उपयोग करते रहे हैं.
क्या सलवा जुडुम में आदिवासियों को जबरदस्ती शामिल किया गया
भैरमगढ में आयोजित चैकले मांदी में पीड़ित साथी शामिल नहीं हो पाए थे. उन्होंने एक और बैठक करने का अनुरोध किया.उन्होंने एक चौकाने वाला आंकड़ा बताया.उन्होंने बताया कि भैरमगढ ब्लॉक में इस साल 58 नक्सल पीड़ित परिवारों को सरकारी नौकरी दी गई है. इनमें से 56 को पुलिस की नौकरी दी गई.एक को एक स्कूल में चपरासी की नौकरी दी गई है और दूसरे ने चपरासी की नौकरी स्वीकार नहीं की.
उन्होंने कहा, ”हम चाहते हैं यह हिंसा बंद हो.जैसे हमारे घर बर्बाद हुए हैं और घर बर्बाद ना हो.हमारी और बहनें विधवा ना बने और बच्चे अनाथ ना हों. इस सरकार ने साढ़े चार साल पहले यह वादा किया था कि यदि वे जीतेंगे तो इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत के गंभीर प्रयास किए जाएंगे. उन्होंने कहा हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस हिंसा को खतम करने के लिए बातचीत शुरू करें.हम और लड़ाई नहीं चाहते.हम किसी को मारना नहीं चाहते और हम नहीं चाहते कोई भी यहां मरे.”
सरकार पर आदिवासियों की जमीन पर कैंप बनाकर मुआवजा न देने का आरोप
एक साथी का कहना था कि ‘सलवा जुडुम’ जबरदस्ती हमें शहर में लेकर आया.गांव में हमारी जमीन पर पुलिस ने कैंप बना लिया है.हम बदले में ज़मीन मांग रहे हैं तो सरकार आनाकानी कर रही है.हाई कोर्ट गए तो सरकार को कुछ अंतरिम आदेश दिए पर उसके बाद से कोर्ट भी कुछ नहीं कर रही है.सरकारी अधिकारी हम पीड़ितों के साथ अक्सर बहुत बुरा व्यवहार करते हैं,यह बदलना चाहिए.उनका कहना था कि सरकार ने हमें हमारे घरों से निकाला.’सलवा जुडुम’ एक सरकारी आयोजन था,हमें जबरदस्ती उसमें हमें जोड़ा गया था.अब हमें जबरदस्ती पुलिस में भर्ती ना किया जाए.हमें सरकारी और विभागों में काम दिया जाए.अगर हमारी जमीन पर पकिस का कैंप बन गया है तो, हमें सरकार बदले में जमीन नहीं देगी तो हम मदद मांगने कहां जाएंगे?
(नई शांति प्रक्रिया माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में सरकार और भाकपा( माओवादी) को वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश है. नई शांति प्रक्रिया एक अभियान चला रही है इसे चैकले मांदी (सुख शांति के लिए बैठक) नाम दिया गया है. चैकले मांदी का आयोजन छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में किया जा रहा है. नई शांति प्रक्रिया दरसअल समाज के कुछ ऐसे लोगों का समूह है, जो मध्य भारत में शांति लाने के लिए पिछले पांच साल से प्रयास कर रहे हैं. इस प्रक्रिया से जुड़े 15 लोग अगले दो माह हिंसा प्रभावित जिलो में जाकर लोगों से शांति बैठकें करेंगे.’दलित खबर’ इन बैठकों की खबरें आप तक पहुंचाएगा.शुभ्रांशु चौधरी नई शांति प्रक्रिया के संयोजक हैं)