बिहार सरकार जाति आधारित सर्वेक्षण करा रही है. इसका पहला चरण खत्म हो चुका है. छह अप्रैल को बिहार में रहने वाली 214 जातियों के लिए कोड जारी किए गए थे. इस सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू होगा. यह चरण 15 मई तक चलेगा. सरकार ने जिन 214 जातियों की सूची जारी की है, उसमें मुसलमानों की एक जाति मुगल का जिक्र नहीं हैं.इससे बिहार के कई जिलों में निवास करने वाले मुगल परेशान हैं. उन्होंने इस सर्वेक्षण में शामिल करने के लिए बिहार सरकार से लेकर जिले के अधिकारियों तक से गुहार लगाई है.लेकिन अभी उनकी समस्या का समाधान नहीं निकला है.
बिहार में कहां कहां रहते हैं मुगल
बिहार की जातियों की सूची सार्वजनिक होने के बाद दरभंगा के बेनीपुर सीट से विधायक प्रोफेसर विनय कुमार चौधरी ने बिहार विधानसभा के सचिव को एक चिट्ठी लिखी. उन्होंने इस मामले को उठाते हुए मुगल जाति को सूची में शामिल करने की मांग की है. उन्होंने लिखा है कि पिछले साल सभी प्रखंडों में जातियों की सूची उपलब्ध कराते हुए मांग की गई थी कि अगर कोई जाति का नाम सूची में शामिल होने से रह गया हो तो उस संबंध में जानकारी दी जाए. इसके बाद 11 जातियों के नाम इसमें जोड़े गए. इसके बाद से प्रकाशित अंतिम सूची में 214 जातियों का जिक्र है. लेकिन इसमें मुगल जाति का जिक्र नहीं है. प्रो चौधरी ने अपनी चिट्ठी में बताया है कि उनके जिले के जाले प्रखंड में मुगल जाति की आबादी करीब 10 हजार है. उन्होंने बताया कि बिहार के सीतामढ़ी, दरभंगा, समस्तीपुर, सिवान और सीमांचल के जिलों में भी मुगल निवास करते हैं.
जदयू विधायक का कहना है कि मुगलों को बिहार में जाति प्रमाण पत्र जारी होता रहा है. उनको आर्थिक रूप से कमजोर बताया जाता रहा है. उनका कहना है कि राजस्व अभिलेखों में भी मुगलों का जिक्र है.उन्होंने सरकार से मुगलों को जातियों की सूची में शामिल कराने की मांग की है.
सरकार की साजिश या अधिकारियों की लापरवाही
अतहर इमाम बेग दरभंगा जिले के जाले ब्लॉक के जेडीयू के अध्यक्ष हैं. उन्होंने ‘दलित ख़बर’ को बताया कि जाति जनगणना से मुगलों का नाम गायब करना अधिकारियों की गलती है.उन्हें यह सरकार की गलती नहीं लगती है.वो बताते हैं कि अंतिम रूप से प्रकाशित जातियों की सूची में क्रमांक-188 पर अंकित जाति में सूरजापुरी मुस्लिम (शेख, सैयद, मलिक, मुगल, पठान को छोड़कर) केवल पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जिले के लिए है.इसमें मुगल का जिक्र है, लेकिन जातियों की अंतिम सूची में 1 से 214 तक में मुगल का जिक्र नहीं है. जबकि शेख, सैयद, मलिक और पठान का अलग-अलग क्रमांक पर जिक्र है. वो बताते हैं कि मुगल बिहार में पढ़ाई-लिखाई में आगे हैं. वो बताते हैं कि मुगल पहले सूद पर पैसा चलाने का काम करते थे. उनको हिसाब-किताब का पक्का माना जाता है. वो पूरे बिहार में मुगलों की गिनती न करने को अधिकारियों की लापरवाही तो मानते हैं, लेकिन इसे कोई राजनीतिक साजिश मानने से इनकार करते हैं.
अब कहां होगा मुगल जाति का जिक्र
बिहार विधानसभा के सचिव को लिखी चिट्ठी पर कार्रवाई के सवाल पर जदयू विधायक प्रोफेसर विनय कुमार चौधरी ने ‘दलित खबर’से कहा कि उनकी अधिकारियों से बात हुई है. उन्होंने बताया है कि मुगल जाति के लोगों को 215 नंबर अन्य जाति के कॉलम में खुद को दर्ज कराना होगा. इसके बाद से उसका विश्लेषण कर उनकी संख्या का पता लगाया जाएगा.
जाति की सूची में मारवाड़ियों को भी नहीं मिली जगह
इस जातिय सर्वेक्षण केवल मुगल ही नहीं छूटे हैं. बिहार की अर्थव्यवस्था में बहुत अहम स्थान रखने वाले मारवाड़ियों का भी जिक्र अंतिम सूची में नहीं है.सर्वेक्षण के शुरू में जनगणना के प्रगणकों को जातियों की जो सूची दी गई थी, उसमें ‘मारवाड़ी’ को जाति के रूप में दिखाया गया था. लेकिन बाद में उसे संशोधित कर मारवाड़ी जाति का हो हटा दिया गया. अब कहा जा रहा है कि दूसरे प्रदेशों से आकर बसे बंगालियों, राजस्थानियों, मराठियों आदि जातियां जिनका जिक्र सूची में क्रम संख्या एक से 214 तक नहीं हैं, वे अपनी जाति को 215 नंबर पर अन्य में दर्ज कराएंगे.