राजेश कुमार आर्य

र्नाटक के विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Election 2023)में कांग्रेस (Congress) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है.चुनाव आयोग के मुताबिक कांग्रेस ने अब तक 71 सीटें जीत ली है. वहीं उसे 65 सीटों पर बढ़त हासिल है. इस तरह वहां सत्तारूढ़ बीजेपी (BJP) ने अब तक 30 सीटें जीत ली हैं और 34 सीटों पर आगे चल रही है. इस तरह बीजेपी के खाते में 64 सीटें आती हुई दिख रही हैं. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनना तय है. इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Basavaraj Bommai) ने बीजेपी की हार स्वीकार कर ली है.वहीं चुनाव परिणामों पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi)ने कहा कि कर्नाटक में मोहब्बत की दुकान खुल गई है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पांच वादे पहली कैबिनेट बैठक में पूरे होंगे.

मुख्यमंत्री ने स्वीकार की हार

बोम्मई उन्होंने कहा है, “हम मंजिल तक नहीं पहुंच पाए.सभी परिणाम आने के बाद हम विस्तृत विश्लेषण करेंगे और एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में हम विभिन्न स्तरों पर अपनी कमियों को देखेंगे उसमें सुधार करेंगे और इसे पुनर्गठित कर लोकसभा चुनाव में वापसी करेंगे.” वहीं कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी को यह संदेश मिल गया है कि जनता के मुद्दों पर टिके रहना ही मायने रखता है.

कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान

कर्नाटक के चुनाव नतीजों पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, ”कर्नाटक की जनता को, कार्यकर्ताओं को, नेताओं को और सभी नेताओं को जिन्होंने कर्नाटक में काम किया उन्हें बधाई देता हूं.दूसरी तरफ गरीब जनता की शक्ति थी, कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में गरीबों के साथ थी.कर्नाटक ने ये बताया कि मोहब्बत इस देश को अच्छी लगती है. कर्नाटक में नफरत की बाजार बंद हुई है, मोहब्बत की दुकानें खुली हैं. पांच वादों को पहले दिन पहले कैबिनेट में पूरा करेंगे.”

आइए यह समझने की कोशिश करते हैं कि दक्षिण भारत के एक मात्र राज्य जहां पर बीजेपी की सरकार थी, वहां उसे हार का सामना क्यों करना पड़ा.

कांग्रेस का भ्रष्टाचार पर अटैक

देश अन्य राज्यों में बीजेपी कांग्रेस पर भ्रष्टाचार को लेकर हमला करती रही.लेकिन कांग्रेस ने कर्नाटक में बीजेपी के खिलाफ भ्रष्टाचार को हथियार बना दिया. उसने शुरू से ही कर्नाटक की बसवराज बोम्मई की सरकार को 40 परसेंट वाली सरकार बताकर हमला किया. कांग्रेस ने सरकारी ठेकों में 40 परसेंट कमीशन वाली का सरकार का नारा देकर बीजेपी पर हमला किया.एक ठेकेदार की आत्महत्या और बीजेपी विधायक के बेटे की घूस लेते हुए पकड़े जाने को कांग्रेस ने इस मुद्दे का हवा. वह लोगों को यह समझाने में सफल रही कि बीजेपी सकार में भ्रष्टाचार का बोलबाला है.

सरकार बदलने का रिवाज

कर्नाटक में सरकारें बदलने का रिवाज है. इसे बीजेपी बदल नहीं सकी. 1985 से ही हर बार सत्ता परिवर्तन होता रहा है. बीजेपी को 2019 में तब सरकार मिली थी, जब जनता दल सेकयुलर के नेता एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार के कुछ विधायक उसके साथ आ गए थे.सरकार बनने के बाद बीजेपी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई.बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम के पद से हटा तो दिया.लेकिन उसका कोई विकल्प नहीं खोज पाई.

उल्टा पड़ा आरक्षण का दांव

बीजेपी सरकार ने चुनाव से पहले मुसलमानों को मिलने वाले चार फीसदी आरक्षण खतम कर दिया. बीजेपी ने इस 4 फीसदी आरक्षण का दो फीसदी लिंगायत और जो फीसदी वोक्कालिगा समाज को दे दिया. वहीं मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के 10 फीसदी आरक्षण में शामिल दिया गया. इसके विरोध में मुसलमानों ने बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर कांग्रेस को वोट किया. इसके साथ ही बीजेपी हिंदुओं का वोट भी अपनी ओर करने में नाकाम रही.

महंगाई बनी मुद्दा

कांग्रेस और जेडीएस ने चुनाव में पेट्रोल, डीजल, गैस की महंगाई को मुद्दा बनाया था.इसके जरिए कांग्रेस माहौल बनाने में सफल रही.मिडिल क्लास और गरीब तबके के लोगों में बीजेपी के खिलाफ माहौल बना, जिसका बड़ा हिस्सा उसे वोट देता है.एक तरफ जरूरी चीजों की महंगाई और दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से मुफ्त गैस सिलेंडर देने जैसे ऐलानों ने चुनाव में बड़ा काम किया.

लिंगायतों का बीजेपी से मोहभंग

बीजेपी के कद्दावर लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़ देने का असर भी चुनाव परिणामों पर हुआ है.कार्नाटक की जनसंख्या में 17फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले लिंगायत समाज को बीजेपी को सबसे बड़ा वोट बैंक माना जा जाता है. जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़ने से बीजेपी को झटका लगा.

पीएम मोदी पर निर्भरता

कर्नाटक का पूरा चुनाव बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा. मोदी ने कर्नाटक में धुंआधार प्रचार किया. जमकर रोड शो किया. उन्होंने बजरंग दल पर पाबंदी को बजरंग बली से जोड़ा. वह कर्नाटक में डबल इंजन की सरकार की बात करते रहे. कर्नाटक में जयपुर के ब्लास्ट को मुद्दा बनाते रहे. कांग्रेस ने यहां भी समझदारी दिखाई, उसने बजरंग दल और पीएफआई को एक ही पड़ले पर रखा. लोगों ने इसे पसंद किया.

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