शुभ्रांशु चौधरी

माओवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज ने सरकार और माओवादियों से हिंसा खत्म कर वार्ता की मेज पर आने की अपील की है. इसके लिए आदिवासी समाज चैकले मांदी या सुख शांति के लिए बैठकों का आयोजन कर रहा है. इन बैठकों में इस हिंसा को खत्म करने और आदिवासियों को उनके संवैधानिक हक दिलाने के लिए प्रस्ताव पास किए जा रहे हैं.छत्तीसगढ़ का आदिवासी समाज प्रदेश की कांग्रेस सरकार को उसका चुनावी वादा भी याद दिला रहा है. जिसमें उसने इस समस्या का वार्ता के जरिए समाधान करने का वादा किया है. पिछले साढ़े चार साल में प्रदेश सरकार की ओर से इस दिशा में दिखाई गई उदासीनता से आदिवासी दुखी हैं. अब उन्होंने चुनाव के बहिष्कार की चेतावनी दी है. उनका कहना है कि ‘वार्ता नहीं तो वोट नहीं’.

सरकार और माओवादियों से क्या चाहते हैं आदिवासी?

कोंडागांव जिले के फरसगांव के गोण्डवाना भवन में चैकले मांदी यानि की जनता की भलाई और सुख-शांति के लिए बैठक का आयोजन आठ मई को किया गया.इसका आयोजन गोण्डवाना समाज समन्वय समिति और सर्व आदिवासी समाज ने किया. इसमें चार प्रस्ताव पारित किए गए.बैठक में पारित पहले प्रस्ताव में मांग की गई है कि प्रदेश में सरकार चला रही कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आदिवासी क्षेत्र में नसक्सलवाद की समस्या के समाधान के लिए गंभीर प्रयास करने की बात कही थी. इसलिए वर्तमान कांग्रेस सरकार से मांग की जाती है कि वो घोषणा पत्र के अनुसार दो महीने में इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास करे.

वहीं दूसरे प्रस्ताव में मांग की गई है कि आदिवासी क्षेत्र में सभी संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के लिए माओवादी संगठन सरकार से वार्ता करे और उसके बदले में हिंसा और अस्त्र-शस्त्र को त्याग दें.तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि बस्तर संभाग के प्रत्येक ग्राम सभा से सुख शांति के प्रस्ताव पारित कर वर्तमान सरकार को भेजा जाए.

आदिवासी समाज ने सरकार को क्या चेतावनी दी है?
बैठक में पारित चौथे प्रस्ताव में कहा गया है कि पेशा एक्ट में हुई कमी को स्मरण करते हुए सरकार इस प्रस्ताव का पूरी तरह से पालन करे. ऐसा नहीं करने पर ‘वार्ता नहीं तो वोट नहीं’, का पूरी तरह से पालन किया जाएगा.

वहीं सात मई को कोंडागांव जिले के बड़े डोंगर के गोंडवाना भवन में भी चैकले मांदी का आयोजन किया गया. इसमें क्षेत्रिय गोंडवाना समन्वय समिति ने प्रस्ताव पास किया कि प्रशासन के खिलाफ अपनी बातों को रखने पर किसी का उत्पीड़न न किया जाए.बैठक में शामिल लोगों का कहना था कि कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में नक्सलवाद की समस्या का वार्ता के जरिए समाधान करने की बात कही थी. कांग्रेस सरकार को इस वादे की याद दिलाने के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा. इस बैठक में माओवादियों से अपील की गई है कि वे संविधान में दिए गए आदिवासियों के अधिकारियों को दिलाने और उनकी भलाई के लिए सरकार से वार्ता करें.

हर गांव से भेजा जाएगा वार्ता का प्रस्ताव

बैठक में हलबा समाज के जिला प्रमुख शिव कुमार पात्र ने कहा यद्यपि इस प्रस्ताव को मूलतः गोंडवाना समाज ने पारित किया है, लेकिन सभी समाज इस प्रस्ताव के पक्ष में है. हम जल्द ही इस प्रस्ताव को हमारी ग्राम सभा में पारित करवाकर आगे भेजने का प्रयास करेंगे.वहीं गोंडवाना समाज के प्रमुख तेज मंडावी ने कहा,”हम चाहते हैं कि ऐसे प्रस्ताव सभी गांवों से आएं. हम इस प्रस्ताव को सर्व आदिवासी समाज के जिला प्रमुख को इस आग्रह के साथ भेज रहे हैं कि वे हमारे आग्रह को आगे दोनों पक्षों को भेज देंगे.हमारे गांव में ही इस हिंसा की शुरुआत 1991 में हुई थी. हमें इस बात की बहुत खुशी है कि इसके समापन की शुरुआत भी हमारे गांव से ही हो रही है.

छत्तीसगढ़ के किस गांव से हुई थी माओवादी हिंसा की शुरुआत?

बड़े डोंगर ही छत्तीसगढ़ की वह जगह है, जहां 21 मई 1991 को माओवादियों ने दंडकारण्य में अपने खूनी इतिहास की शुरुआत की थी. उस दिन उन्होंने एक चुनाव दल की गाड़ी को आईईडी से उड़ा दिया था. इस हमले में 10 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद से माओवादी आईईडी से ही बड़े-बड़े हमले कर रहे हैं.

(लेखक छत्तीसगढ़ में सिविल सोसाइटी की ओर से शुरू की गई पहल ‘नई शांति प्रक्रिया’ के संयोजक हैं)

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