शुभ्रांशु चौधरी
नई शांति प्रक्रिया माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में सरकार और भाकपा( माओवादी) को वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश है. नई शांति प्रक्रिया एक अभियान चला रही है इसे चैकले मांदी (सुख शांति के लिए बैठक) नाम दिया गया है. चैकले मांदी का आयोजन छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में किया जा रहा है. नई शांति प्रक्रिया दरसअल समाज के कुछ ऐसे लोगों का समूह है, जो मध्य भारत में शांति लाने के लिए पिछले पांच साल से प्रयास कर रहे हैं. इस प्रक्रिया से जुड़े 15 लोग अगले दो माह हिंसा प्रभावित जिलो में जाकर लोगों से शांति बैठकें करेंगे.
समस्या के समाधान का तरीका क्या है?
अंतागढ़ की चैकले मांदी में पहली बार यह उभरकर आया कि प्रस्तावित शांति वार्ता में कंपनियों को भी शामिल करना चाहिए. लोगों का कहना था कि हमें शक है कि कंपनियां ही माओवादियों को धन,गोला बारूद और अस्त्र देती हैं, हालांकि इसका कोई सबूत हमारे पास नहीं है. हमें यह भी शक है कि सरकार इस समस्या को हल नहीं करना चाहती.हमें लगता है कि सरकार यदि चाहे तो वह माओवादियों को परास्त कर सकती है. इसमें शामिल हुए लोगों का कहना था कि वार्ता इस समस्या को हल करने का दूसरा तरीका है. हम यहां सुरक्षा और लोगों के अनुरोध पर यहाँ किसी का नाम नहीं दे रहे हैं.
चैकले मांदी में आए लोगों का कहना था कि वार्ता की जिम्मेदारी आदिवासी समाज की है. आज मारने और मरने वाले दोनों आदिवासी समाज से हैं और हमारे समाज प्रमुखों का दोनों ओर से संपर्क होता है. हमारे समाज के गायता, गुनिया, पटेल जैसे पारंपरिक नेताओं को वार्ता की पहल करनी चाहिएय यह प्रस्ताव लगभग हर चैकले मांदी बैठक में आया है.
क्या कांग्रेस को याद दिलाना होगा चुनावी वादा?
इन बैठकों में एक बात बार-बार उभर कर सामने आ रही है, वह यह है कि यह चुनाव का साल है और समाज को चुनाव के पहले वार्ता शुरू करने के लिए कांग्रेस की सरकार पर दबाव डालना चाहिए. कांग्रेस ने 2018 के चुनाव के पहले अपने घोषणापत्र में इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत के गंभीर प्रयास करने का वादा किया था.सरकार को यह याद दिलाने की जरूरत है. लोगों का कहना था कि सरकार तब तक बातचीत नहीं करेगी जब तक उसे यह नहीं दिखाई दे कि जनता इसकी मांग कर रही है. छत्तीसगढ़ में जारी हिंसा में गोंड समाज ही सबसे अधिक पीड़ित है, लेकिन उस समाज के नेता इस मांग को अब तक व्यवस्थित रूप से जोर-शोर से सामने लाने में असफल रहे हैं, जैसा उन्होंने आरक्षण जैसे विषय को सर्वमान्य राजनीतिक मुद्दा बनाया है.
वहीं मानपुर की चैकले मांदी में शामिल लोगों में नक्सल पीड़ित महिलाओं की संख्या अधिक थी. इसमें केवल एक ही पुरुष शामिल हुआ. चैकले मांदी में आईं महिलाओं ने बताया कि यहां मारे गए लगभग सारे लोग पुरुष ही थे. वे अपने पीछे पीड़ित महिलाओं को छोड़ गए हैं. उन्होंने बताया मानपुर जिले में 110 नक्सल पीड़ित परिवार हैं. जब उनसे पुलिस से पीड़ित परिवारों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि काफी होंगे,लेकिन सही संख्या हमें पता नहीं है.हमने पूछा कितने सरेंडर किए हुए नक्सली हैं? कितने विस्थापित परिवार हैं जो नक्सली के डर से अपने गांव छोड़कर शहर आने को मजबूर हुए हैं? इसको कोई आंकड़ा उनके पास नहीं था.
शांति की प्रक्रिया में कहां हैं महिलाएं?
इन महिलाओं को नागालैंड,कोलंबिया और उत्तरी आयरलैंड की कहानी बताई गई. हमने बताया कि नागालैंड में माताओं ने नागा मदर्स एसोसिएशन बनाया और कहा जो भी मारा जा रहा है चाहे वह पुलिस हो या विद्रोही वे हमारे ही बेटे हैं. उत्तरी आयरलैंड में भी माताएं इकट्ठी हुईं और कहा चाहे वो कैथोलिक मरे या प्रोटेस्टेंट हमारे ही बेटे मर रहे हैं, दोनों जगह बातचीत शुरू करवाने में इन महिलाओं की भूमिका अहम थी. कोलम्बिया के बारे में उन्हें बताया कि वहां 2011 के बाद माओवादी पीड़ित और पुलिस पीड़ित दोनों साथ आए और दोनों ने दोनों पक्षों पर दबाव बनाया कि वे बातचीत शुरू करें. इसके बाद 2016 में वहां शांति समझौता हो गया. यह सब सुनने के बाद पीड़ित महिलाओं ने कहा कि वे अब अन्य पीड़ितों की जानकारी जुटाएंगी.
(लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार और नई शांति प्रक्रिया के संयोजक हैं )